इस मन को कैसे जीतोगे,
ये मन तो बड़ा चंचल है,
जो इधर-उधर भटकता है,
ये मन तो बड़ा कपटी है,
जो मंजिल से दूर करता है,
इस मन से कैसे निपटोगे l
इस मन के ही कारण तो
उथल-पुथल जीवन में होती है,
इस मन के ही कारण तो
दुनियाँ में हलचल होती है,
ये मन तो ख्वाब बड़े दिखलाता है,
कभी मुश्किल में फँसाता है,
कभी मुश्किल से बचाता है,
इस मन को कैसे निखारोगे l
इस मन को राह पर
कोई बिरला ही ला पाता है,
दुनियाँ में कोई बहादुर ही,
इस मन पर डांट लगाता है,
कभी कुछ करने की ये कहता है,
कभी करने से रोक देता है,
अच्छे काम में ना करता ये,
बुरे काम की तरफ धकेल देता है,
ईश्वर-भजन में मन लगे तो,
फिर तो भवसागर से पार उतरोगे l
Thank You.
Comments