मन असंतुष्ट सा क्यों रहता है, सब कुछ पाकर भी, ये मन तृप्त क्यों नही हो पाता है, इस दुनियाँ में जीना, मुश्किल सा क्यों लगता है, इस दुनियाँ की उलझनों में, ये मन क्यों उलझता जाता है, आसान बनाने की कोशिश है पर, जीवन आसान क्यों नही बन पाता है l कुछ करके भी यहाँ चिंता है, और यहाँ बिना किए भी चिंता है, आज का तो ख्याल नही, पर कल परसों की चिंता है, अपने पथ पर चल तो पड़े पर, मंजिल का कुछ पता नही, कितना समय लगेगा जग में, इस बात का भी पता नही, छोड़कर सब उदासियाँ, क्यों नही गीत खुशी के गाता है l मनमानी कितना करेंगें, एक दिन तो सब छूटेगा, अहंकार कितना करेंगें, एक दिन, घड़ा पाप का फूटेगा, याद करके उस ईश्वर को, ऐ मन, क्यों नही पार हो जाता है l Thank You.