मैं एक आत्मा हूँ,
मैं परमात्मा का अंश हूँ,
मैं अति सूक्षम,
अनंत परमात्मा का हिस्सा हूँ,
मैं परमात्मा का अंश हूँ,
मैं अति सूक्षम,
अनंत परमात्मा का हिस्सा हूँ,
मुझे यह जानना जरूरी है
कि मैं कौन हूँ,
और परमात्मा कौन है,
मेरे जीवन का सफर,
आत्मा से परमात्मा तक का है,
मुझे सूक्षम से विराट तक का
सफर तय करना है,
मुझे सूक्षम से अनंत तक का
सफर तय करना है,
मुझे आत्मा से परमात्मा तक का
सफर तय करना है ,
मुझे भूल जाना है
हर प्रकार के राग द्वेष को,
मुझे छोड़ देना है
हर प्रकार के लालच को,
मुझे अपने हृदय को
विराट करना है,
मुझे अपने मन को, आँखों को
और कानो को
खोल कर रखना है,
मुझे मनमर्जी के काम नही
अपितु वे काम करने है जो
परमात्मा को प्रिय हो,
अगर जीवन में
ईश्वर का प्रिय बन पाऊँ
तो यह जीवन धन्य हो जाए l
मुझे यह अहसास होना चाहिए
कि मैं परमात्मा का अति प्रिय हूँ,
और परमात्मा मेरे अति प्रिय हैं,
मुझे समझना है कि
परमात्मा के सिवाय
मेरा कोई हितैसी नही है,
हाँ मैं परमात्मा से दूर इसलिए हूँ
क्योंकि मैंने दुनियाँ को
सब कुछ अपना मान लिया है,
मैंने यह समझ लिया है कि
संसार मेरा है और मैं संसार का हूँ,
लेकिन संसार तो
एक दिन छूट जायेगा और
और फिर मैं कौन से संसार में रहूँगा,
स्वयं को जानना और
परमात्मा को जानना
यही वास्तविक ज्ञान है l
हे प्रभु ऐसी दया करो कि
मैं सदैव आपको नमस्कार करता हूँ,
सदैव आपको याद करूँ
ऐसी कृपा करना,
सदैव आपसे प्रेम रहे ऐसी दया करना,
मेरी आत्मा के लिए
किसी चीज का बंधन नही रहे,
ना मन का, ना तन का और ना धन का,
आपकी दया से
मैं सदैव आपको नमस्कार करता हूँ,
सदैव आपको याद करूँ
ऐसी कृपा करना,
सदैव आपसे प्रेम रहे ऐसी दया करना,
मेरी आत्मा के लिए
किसी चीज का बंधन नही रहे,
ना मन का, ना तन का और ना धन का,
आपकी दया से
मैं संपूर्ण लोकों में विचरण करूँ,
मैं मैं ना रहूँ, मेरी मैं ना रहे,
मेरे मन में कोई भय ना रहे,
तू मुझमें मैं तुझमें बस जाऊँ,
एक पल भी
मैं मैं ना रहूँ, मेरी मैं ना रहे,
मेरे मन में कोई भय ना रहे,
तू मुझमें मैं तुझमें बस जाऊँ,
एक पल भी
तुझसे दूर नही रह पाऊँ,
मेरी यही आशा,
मेरी यही आशा,
मेरी यही अभिलाषा,
ना कुछ खोने का डर,
ना कुछ पाने की आशा,
इस जगत में तेरा बनकर रहूँ
ऐसी करुणा करना l
Thank you.
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