जहाँ चैन-सुकून ना हो वहाँ क्या रहना,
जहाँ प्यार ना हो वहाँ क्या रहना,
जिंदगी कभी चलती है काँटों पर,
जिंदगी कभी चलती है पथरीले रास्तों पर,
जहाँ आराम ना मिले वहाँ क्या ठहरना ।
अपने ही घर आकर तो सुकून मिलता है,
अपने ही घर तो लौटना पड़ता है,
कितनी भी चाहे घूमों दुनियाँ,
अपने ही घर तो ठिकाना मिलता है,
जहाँ आजाद ना हो वहाँ क्या ठहरना ।
जो बेघर है वे जाएँ कहाँ,
जो बेघर है वे रहे कहाँ,
पंछी भी अपना ठिकाना बना लेते है,
कहीं भी उडकर अपनी जगह आ जाते हैं,
जहाँ मनमर्जी ना चले वहाँ भी क्या ठहरना ।
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