कौन समझ पाया जीवन को,
लगता है सब वक्त की कठपुतली है,
कौन यहाँ मर्जी का मालिक,
लगता है जिंदगी जैसे उलझी है,
सबकी किस्मत अलग यहाँ पर,
वक्त के हाथो में खेलते रहते हैं,
आज यहाँ तो कल है कहाँ पर,
जिंदगी जैसे धुंधली है ।
समय को कौन बदल पाता है,
किस्मत को कौन बदल पाता है,
खुद को कौन बदलता है यहाँ,
दुनियाँ को कौन बदल पाता है,
चारों तरफ नजारे है पर,
किसकी आँखें देखती है ।
हर कोई कहता है मे ये कर दूँगा,
पर क्या कोई कुछ कर पाता है,
जिसने वक्त की कीमत समझी,
वही यहाँ कुछ कर पाता है,
सोच अलग रखते हैं लेकिन,
मुश्किलें दूर हो पाती हैं ।
Aman
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