दुनियाँ का बेहद मुश्किल सवाल,
लेकिन खोजना भी जरूरी,
स्वयं को जानने के लिए,
खुद को समझने के लिए,
मैं मन तो नही, जो सोचता है,
मैं दिल तो नही, जो धड़कता है,
जो महसूस करता है,
मैं आँख तो नही जो देखती है,
मैं जीभ तो नही जो चखती है,
मैं हवा तो नही श्वासों में आती जाती है,
मैं पैर तो नही जो चलते हैं,
मैं हाथ तो नही जो सब काम करते हैं,
मैं जुबाँन तो नही जो बोलती है,
मैं शरीर तो नही,
जिसे मैंने धारण किया हुआ है,
जिसका नाश हो जाना है,
फिर मैं कौन हूँ,
मैं कहाँ हूँ इस शरीर में,
मैं वह हूँ जो बोलता हूँ,
मैं वह हूँ जो देखता हूँ,
मैं वह हूँ जो सुनता है,
मैं वह हूँ जो जानता हूँ,
मैं वह हूँ जो महसूस करता हूँ,
मैं वह हूँ जो जो सब करता हूँ,
मैं वह हूँ जो साँस लेता हूँ,
मैं धड़कन में आवाज,
मैं आँखों में प्रकाश,
मैं मन में विश्वास,
मैं बेहद सूक्ष्म,
मैं अनंत का भाग,
मैं असीम का भाग,
मैं अखंड का भाग,
मैं उसका भाग,
मैं अपरंपार का हिस्सा,
मुझे मिलना है उस अनंत से,
मैं शब्द मिलना है उस शब्द से,
मैं प्रकाश मिलना है उस प्रकाश से,
मैं हूँ वह जो है वह,
मुझे मिलना है उससे,
जो है और सदा रहेगा,
मैं शरीर में वहाँ हूँ,
जहाँ महसूस होता हूँ,
मैं रब के बेहद करीब,
मैं खुद के बेहद करीब,
मैं स्वयं को सुनता हूँ,
मैं स्वयं को देखता हूँ,
मैं स्वयं को जानता हूँ,
मैं स्वयं को मानता हूँ
कि में इस दुनियाँ में हूँ,
इस शरीर में हूँ,
मैं खुद की आवाज,
मैं खुद का प्रकाश,
मैं खुद का रस,
मुझमें रब की आवाज,
मुझमें रब का प्रकाश,
मुझमें रब का आभास,
मेरा जीवन ये खास,
मेरा रूप ये खास,
मेरा स्वरूप ये खास,
मैं दुनियाँ में आया हूँ,
मुझे दुनियाँ से जाना है,
खाली हाथ आया हूँ,
खाली हाथ जाऊँगा,
फिर काहे का घमंड,
फिर किस बात का अंहकार,
यही मेरी कहानी,
यही मेरी जिंदगानी l
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