आपको थोड़ा आश्चर्य जरूर होगा, जब आप सोचेंगे कि आत्मा एक है और परमात्मा एक है, और आत्मा ही परमात्मा है l परमात्मा एक है यह तो सभी जानते हैं, लेकिन आत्मा एक है, सबकी आत्मा एक है इसके ऊपर थोड़ा विचार करना आवश्यक है, अगर आप कहेंगें कि मेरे अंदर जो आत्मा है वह तो केवल मेरी ही आत्मा है, ना कि सारे जगत की आत्मा है l
लेकिन परमात्मा तो एक है सर्वव्यापक है, सबमें समान रूप से मौजूद है, जैसे जल की बूँद सागर में समाई है, और सागर कहलाती है वैसे ही आत्मा सम्पूर्ण सृष्टि के प्राणियों में होते हुए भी परमात्मा कहलाती है l परमात्मा एक होते हुए भी अनेक है और अनेक होते हुए भी एक है l हमें स्वयं को जानने की आवश्यक है और परमात्मा को जानना अनिवार्य है, यही वास्तविक ज्ञान है l
एक सुंदर उदाहरण आत्मा और परमात्मा को जानने और समझने के लिए, अगर एक खुले मैदान में हजारों मिट्टी के घड़े रख दिए जाएँ और उनमें पानी भर दिया जाएँ और ढक्कन से ढक दिया जाए, तो अगर कोई बाहर से देखेगा, तो उसे केवल घड़े ही नजर आयेंगें, हालाँकि उनमें पानी है लेकिन उनमें पानी या प्रकाश दिखाई नही देगा, लेकिन अगर उन घड़ों के ढक्कन हटा दिए जाएँ तो आसमान में अगर सूरज है तो सब घड़ों में सूरज का प्रकाश नजर आयेगा, अगर घड़ों में पानी शिथिर है तो वह सूरज भी नजर आयेगा l
इसका मतलब यह हुआ कि वह पानी रूपी हम आत्मा है और सूरज रूपी वह परमात्मा है, और घड़ा हमारा शरीर है, हम परमात्मा को इसलिए नही देख पाते क्योकि हमारी आत्मा पर अज्ञान का आवरण चढ़ा है, आत्मा रूपी जल पर काम क्रोध मोह लोभ अहंकार रूपी काई चढ़ी हुई है जिससे हम परमात्मा के स्वरूप के दर्शन नहीं कर पाते, अभ्यास और वैराग्य के द्वारा परमात्मा के स्वरूप के दर्शन किए जाना संभव है l
Thank You.
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