जब मन मेरा, बेचैन रहे,
तो जीवन में कहाँ चैन रहे,
जब रास्ता कोई नही दिखता है,
तो मंजिल का पता कहाँ मिलता है,
जब अंजानी सी उलझन हो,
तो जीवन में, कहाँ सुख-चैन रहे l
सब भूल के अब का पल जीऊँ,
एक रस होकर, मैं खूब जीऊँ,
ना जाने कितनी जिंदगी है ये,
क्यों नही जीवन को खूब जीऊँ,
मुझे क्या मिला, मेरा क्या गया,
इस बात की फिक्र क्यों रहती है,
जो किस्मत है वही होता है,
फिर क्यों नही मैं दिन-रैन जीऊँ l
क्या सोच समझकर, क्यों आगे बढूं,
आगे बढ़ना है काम मेरा,
अपनी धुन में मुझे जीना है
किसी का नही मुझे है बुरा करना,
किसी की मदद करूँ तो यहाँ अच्छा है,
क्यों नही औरों के लिए जीऊँ l
Thank You.
Comments