मेरा मन क्यों बेहद बेचैन है
मेरा मन क्यों बेहद बेचैन है,
मेरे मन में क्यों नही चैन है,
इस दुनियाँ में जैसे कि
मैं मुस्कुराना ही भूल गया हूँ,
इस जीवन में जैसे कि
मैं हँसना ही भूल गया हुँ,
समझ में नही आता कि
मेरे मन में सकून क्यों नही है l
क्या बात है कि जिंदगी
मुझे लगती अजीब सी,
क्या बात है कि
रोशनी नही करीब सी,
जग में भी घूमकर भी
मुझे चैन नही मिला,
खुद में घूमकर भी,
मेरा मन नही खिला,
लगता है जैसे कि
मैं खुद को ही भूल गया हूँ l
रब की मेहर है तो कुछ
जी लेता हूँ दुनियाँ में,
रब का शुक्र है कि
खुश हो लेता हूँ दुनियाँ में,
क्या खोया, क्या पाया,
इसका हिसाब नही है,
क्या मिला, क्या गया,
कुछ पता ही नही है,
सुलझने की कोशिस में,
खुद ही उलझ गया हूँ l
Thank You.
Comments