Saturday, December 10, 2022

मेरी अभिलाषा

चाह नही कि खुद के लिए जीयूं मैं, 
चाह नही कि खुद के लिए करूँ मैं, 
चाह नही कि स्वार्थी हो जाऊँ, 
चाह यही कि निस्वार्थी हो जाऊँ , 
चाह यही कि  देश के काम आऊँ  मैं  । 

चाहे जिस पथ पर भी चलूँ मैं, 
उस पथ पर मैं प्रेम बढ़ाऊँ, 
चाहे जिस दिशा में जाऊँ, 
उस जगह अपनापन बढ़ाऊँ मैं, 
चाह नही कि खुद ही पाऊँ मैं, 
चाह यही कि किसी के काम आऊँ  मैं  । 

मेरी सोच हो औरों के भले की खातिर, 
मेरे कर्म हो औरों के भले की खातिर, 
बेहतर जीवन की उम्मीद करूँ मैं, 
खुशहाल समाज की उम्मीद करूँ मैं, 
चाह यही कि खुद में परिवर्तन लाऊँ मैं  । 

अंतिम चाह यही तो मेरी, 
दुनियाँ में अमन चैन हो, 
एक दूजे का ख्याल रखें सब, 
किसी के मन नही छल कपट हो, 
अपनी कमियाँ मैं सुधारूँ, 
औरों की कमी नही देखूँ मैं, 
चाह यही औरों के चेहरों पर, 
कुछ तो मुस्कुराहट लाऊँ मैं  । 


Aman




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